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लखनऊ नहीं लक्ष्‍मणपुरी! क्‍या है इसके पीछे की कहानी, प्रभु राम ने दी थी तोहफे में?

लखनऊ नहीं लक्ष्‍मणपुरी! क्‍या है इसके पीछे की कहानी, प्रभु राम ने दी थी तोहफे में?

History of Lucknow: लखनऊ को नबावों का शहर कहा जाता है. वहीं इससे पहले के इतिहास और पौराणिक कथाओं पर नजर डालें तो इसके नाम और अस्तित्‍व से जुड़ी कुछ अलग कहानियां सामने आती हैं. बार-बार इस विषय पर मांग उठती रहती है कि लखनऊ का नाम बदल लक्ष्मणपुर या लखनपुर कर दिया जाए. आइए आज जानते हैं कि लखनऊ का नाम बदलने की मांग के पीछे इस शहर की क्‍या कहानी हैं, या धर्म-शास्‍त्रों में इस शहर को लेकर क्‍या पौराणिक कथाएं या किवदंतियां हैं, आज जानते हैं.

प्रभु राम के भाई लक्ष्‍मण ने बसाया था यह शहर

पौराणिक मान्यता है कि लखनऊ शहर का संबंध त्रेता युग से है. त्रेता युग में यह शहर कौशल राज्‍य का हिस्‍सा था. इसे भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने बसाया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को गोमती नदी के किनारे का ये क्षेत्र भेंट में दिया था, जिसके बाद में लक्ष्मण ने ये गोमती के तट पर ये शहर बसाया था इसलिए इसे लक्ष्‍मणनगरी कहा गया.

इस बात को सच मानने के पीछे लोगों का यह तर्क है कि लखनऊ से अयोध्‍या की दूरी महज 80 मील है. जिससे इस शहर के कौशल राज्‍य का हिस्‍सा होने की पूरी संभावना है. चूंकि उत्‍तर भारत में लक्ष्‍मण को लखन भी कहा जाता है इसलिए 11 वीं सदी में इस शहर को लक्ष्‍मणपुर और लखनपुर कहा जाता था. इस शहर में लक्ष्‍मणटीला भी है.

फिर कैसे पड़ा लखनऊ नाम?

लखनऊ के इतिहास पर नजर डालें तो 12वीं सदी के आखिर में कन्नौज पर अफगानों की विजय के बाद इसे गजनी के सुल्तान को सौंप दिया गया था. इसके बाद यह दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया. यह शहर मुगलों के अधीन आ गया और फिर नवाबों का शहर लखनऊ कहा जाने लगा.

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