5000 रुपए लेकर Nora Fatehi आई थीं मुंबई, 9 लड़कियों के साथ एक घर में रहना पड़ा

Nora Fatehi : नोरा फतेही का जन्म कनाडा में हुआ था। नोरा एक मोरक्कन फैमली से आती हैं। कनेडियन मॉडल, डांसर, सिंगर, प्रोड्यूसर और अभिनेत्री भी है Nora Fatehi। नोरा फतेही भारतीय फिल्म जगत से जुड़ी हुई हैं। नोरा एक अच्छी बैली डांसर भी है।
नोरा ने साकी साकी, दिलबर, कमरिया सहित कई गीतों पर डांस किया है। नोरा हिंदी, मलयालम, तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी नजर आती है। नोरा ने 2014 में रोर नामक बॉलीवुड फिल्म से डेब्यू किया था। उन्हें तेलुगु सिनेमा में अपने आइटम नंबर से लोकप्रियता मिली।
हाल ही में नोरा फतेही ने एक इंटरव्यू में अपने स्ट्रगलिंग दिनों को याद किया है। माशेबल इंडिया ऑफ द बॉम्बे जर्नी के नए एपिसोड में नोरा ने बताया कि उन्हें इंडिया में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

नोरा फतेही ने डांसर के रूप में अपना करियर शुरू किया था, लेकिन आज वह एक्ट्रेस के रूप में भी लोकप्रिय है। अब अभिनेत्री ने अपने स्ट्रगल वाले दिनों को याद किया और बताया कि जब वह भारत आई, उनके पास सिर्फ पांच हजार रुपये थे।
9 लड़कियों के साथ रहती थी नोरा
माशेबल इंडिया ऑफ द बॉम्बे जर्नी के नए एपिसोड में Nora Fatehi ने कहा कि जब वह भारत आई थी, उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। मैं उन दिनों पांच हजार रुपये लेकर भारत आई थी। मैं मुंबई में 9 लड़कियों के साथ तीन बेडरूम के फ्लैट में रहती थी।

अंडा और ब्रेड खाकर गुजारे दिन
नोरा फतेही ने आगे कहा कि उन दिनों मैंने कई दिनों तक दूध और अंडा खाकर गुजारा किया था। उनका दावा था कि मैं उस समय एक संस्था में काम करती थी। जो मेरा घर किराया देकर अपना कमीशन काट लेती थी। मैं उस समय बहुत परेशान थी।
नोरा को थैरेपी की जरूरत पड़ गई थी
इंटरव्यू के दौरान, नोरा ने कहा, “तब क्या होता था कि जिस एजेंसी के लिए मैं काम करती थी, वह हमारे अपार्टमेंट का किराया भरती थी और अपना कमीशन काट लेती थी” इसके बाद मेरे पास बहुत कम पैसे की बचत होती थी।
मैंने कई दिन तक दूध, ब्रेड और एक अंडा खाकर गुजरा किया है। उस समय मेरे लिए बहुत बुरा समय था और मुझे सीरियसली थैरेपी की जरूरत थी।’

हफ्ते के मिलते थे तीन हजार रुपए
नोरा फतेही ने पहले भी कई इंटरव्यूज में अपने स्ट्रगलिंग के बारे में चर्चा की है। 2019 में एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जिस संस्था के लिए उन्होंने काम किया था, वह उन्हें सिर्फ एक महीने का तीन हजार रूपये ही देते थे। उन्हें हर दिन इतने कम पैसों में खर्च करना बहुत मुश्किल हो जाता था और हफ्ते के अंत तक उनके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचते थे।